आप करिये फैसला : क्या अन्ना का आंदोलन सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ था?

ब्यूरो(राजाज़ैद) देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए वर्ष 2011 में प्रमुख सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हज़ारे ने देश में लोकपाल की न्युक्ति को लेकर आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन में मुख्य कड़ी के तौर पर अन्ना हज़ारे ने 16 अगस्त 2011 को अनशन शुरू करते हुए इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की शुरुआत बताया था।

अन्ना द्वारा शुरू किये गए इस आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण, कवि कुमार विश्वास, पत्रकार मनीष सिसोदिया जैसे लोग भागीदार बने। उस समय अन्ना की टीम में शामिल सभी लोगों का एक ही नारा था कि देश से भ्रष्टाचार मिटाना है। इतना ही नहीं आंदोलन के मंच से बार बार यह आश्वासन दिया जाता रहा कि यह आंदोलन पूर्णतः गैर राजनैतिक है।

यहाँ तक सब कुछ ठीक चला लेकिन इसके बाद जो शुरू हुआ उसे आज के आइने में देखें तो मामला बिलकुल बदला हुआ नज़र आता है। टीम अन्ना में शामिल अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन जारी रखे। हालाँकि इस समय भी टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविन्द केजरीवाल ये दावे करते रहे कि वे न तो कोई राजनैतिक दल बनाएंगे और न चुनाव लड़ेंगे।

समय बीता तो टीम अन्ना की सोच बदल गयी और अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी का गठन किया गया और चुनाव भी लड़ा गया। टीम केजरीवाल द्वारा पार्टी बनाये जाने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले अन्ना हज़ारे ने कोई विरोध नहीं जताया और धीमे धीमे अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचार के मुद्दों से दूर होते चले गए।

इस दौरान टीम अन्ना के अहम सदस्य रहे अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया दिल्ली की सरकार के मुखिया बने वही किरण बेदी बीजेपी में शामिल हो गयीं और वे राज्यपाल बन गयीं।

इतना ही नहीं अन्ना आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार रहे बाबा रामदेव अपने व्यवसाय में मस्त हैं। उन्हें अब विदेशो में जमा काला धन वापस लाने की चिंता नहीं है।

मध्य प्रदेश में हुए व्यापम घोटाले पर भी अन्ना हज़ारे खामोश रहे। उन्होंने न तो मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ किसी आंदोलन की चेतावनी दी और न ही व्यापम घोटाले को लेकर कोई आवाज़ उठायी।

इतना ही नहीं केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद भी लोकपाल की न्युक्ति को लेकर अन्ना हज़ारे का कभी कभार ही कोई बयान मीडिया में देखने को मिला। केंद्र में मोदी सरकार को तीन वर्ष होने जा रहे हैं, अभी तक लोकपाल की न्युक्ति का मामला अधर में लटका है। लोकपाल की बिल को लेकर यूपीए सरकार के कार्यकाल में दिल्ली में भूचाल खड़ा कर देने वाले अन्ना हज़ारे को शायद अब लोकपाल की न्युक्ति को लेकर कोई चिंता नहीं है।

यहाँ एक अहम सवाल यह उठता है कि क्या अन्ना हज़ारे का आंदोलन सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ था ? अथवा उनका आंदोलन कांग्रेस और यूपीए सरकार के खिलाफ था ? क्यों कि अन्ना ने जिस मांग को लेकर अपना आंदोलन शुरू किया था वह आज भी पूरी नहीं हुई। लोकपाल की न्युक्ति का मामला आज भी अधर में है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र की मोदी सरकार को जल्द लोकपाल की न्युक्ति करने के लिए कह चूका है।

यदि अन्ना हज़ारे का आंदोलन सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ था तो वे व्यापम जैसे बड़े घोटालो पर खामोश क्यों रहे ? केंद्र में लोकपाल की न्युक्ति को लेकर हो रही देरी पर अन्ना हज़ारे को कोई एतराज क्यों नहीं है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर उस इंसान के दिमाग में ज़रूर आएंगे जिसने अन्ना हज़ारे को 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू करते देखा था।

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