वक्त की जरूरत है तौकीर का कदम

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Imran Niyazi
           इमरान नियाज़ी

ब्यूरो (इमरान नियाज़ी) । आईएमसी मुखिया तोकीर रजा खां ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया जोकि देर से ही सही मगर हालात की जरूरत के मुताबिक बहुत ही अच्छा कदम है। इसकी जिसनी भी तारीफ की जाये कम ही है। क्यों कि यही एक रास्ता है जिसपर चलकर इस्लाम, मसाजिद और मुसलमान के वजूद को बचाया जा सकता है फिरका परस्ती काफी हद तक लेकर डूब चुकी है और वह दिन भी दूर नहीं रह गया जब मुसलमानों में आपसी फिरका परस्ती दुनिया ओर खासतौर पर हिन्दोस्तान से इस्लाम, मस्जिद और मुसलमान को नामों निशान मिट जायेगा।

हरम की पासबानी सिर्फ सजदों से नहीं होगी,
कि खाके करबला कुछ और ही आवाज़ देती है।— इमरान नियाज़ी

सबसे पहले यह बताना जरूरी समझता हूं कि मेरे इन ख्यालात को पढ़कर कोई मुझे तौकीर रजा खा का सपोर्टर न समझे मैं तोकीर रजा खां के कुछेक फैसलों के लिए तौकीर रजा खा का कट्टर विरोधी हूं लेकिन जहां बात इस्लाम और मुसलमान के दुश्मन आतंकियों का मुकाबला करने के लिए उठाये गये इस कदम की है तो इसमें तोकीर रजा खां के साथ हूं।

तौकीर रजा खां के इस कदम का विरोध करने वालों को सबसे पहले तारीखे इस्लाम देखना चाहिये कि जब नबीए करीम (सल्ल0) ने वक्त की जरूरत के हिसाब से अब्दुल्ला बिन उबबी का भी साथ लिया था तो आज अगर इस्लाम और मुसलमान के वजूद की हिफाजत के लिए वहाबी देवबन्दी का साथ लिया जाये तो इसमें गलत क्या है।

जो लोग तोकीर रजा खां की मुखालफत कर रहे हैं उनसे एक छोटा सा सवाल पूछना चाहूंगा कि 2002 में जब गुजरात में आतंकियों ने बेकसूर मुसलमानों का कत्लेआम किया जिन्दा जलाया आबरूऐं लूटी, असम में आतंवादियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया, म्यांमार में आतंकियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया, कश्मीर में अकसर दो चार मुसलमानों को मारा जाता है, दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी बुश ने अफगानिस्तान ओर इराक में मुसलमानों का कत्लेआम किया, अमरीकी आतंक ने सीरिया, ईरान वगैराह में लाखों में मुसलमानों को कत्लेआम किया और कर रहे है आजतक किसी ने भी किसी भी मुसलमान को मारने से पहले पूछा क्या कि तू वहाबी देवबन्दी है या सुन्नी ?

कभी कोई नहीं पूछता सिर्फ मुसलमान होना ही काफी होता है कत्ल करने के लिए। तो फिर हम क्यों नहीं सिर्फ मुसलमान बनकर ही दुश्मनों का मुकाबला करते। अगर बात करें तौकीर रजा खां के इस कदम की तो एक बहुत ही कड़वा सच कि चन्द दिन पहले की बात है जब शियाओं से हाथ मिलाया गया था तब कहां थे फतवे क्यों नहीं लगाये गये थे फतवे?

तौकीर रजा खां ने जो कदम उठाया है वो वक्त की जरूरत और हालात का तकाजा है इस वक्त जरूरत है आपसी फिरका परस्ती को दरकिनार करके सिर्फ मुसलमान नाम पर एक प्लेटफार्म पर आना होगा, हमारा कहना है कि आपको वहाबी देवबन्दी वगैरा से रिश्तेदारी नहीं करनी न करो उनके साथ नमाज नहीं पढ़नी न पढ़ो, उनके साथ बिजनैस नहीं करना मत करो लेकिन इस्लाम ओर मुसलमान का वजूद ही मिटा देने की कोशिश करने वालों के मुकाबले एक होकर रहो।

एक छोटी सी मिसाल के तोर पर आप कुरआन पाक लेकर किसी वहाबी देवबन्दी के पास जाईये ओर उससे कहिये कि यह कुरआन है लो ओर इसकी बेअदबी करो, तो क्या वह करेगा ? किसी कीमत पर नहीं करेगा बल्कि आपपर हमलावर हो जायेगा, मर जायेगा या मार देगा लेकिन कुरआन की बेअदबी नहीं करेगा न करने देगा। ओर यही बात आप किसी गैर इस्लाम (सभी नहीं सिर्फ इस्लाम दुश्मन) से कहे तो वो खुश होकर कुरआन की बेअदबी करेगा ओर आपको दोस्त भी मानेगा, तो खुद सोचिये कि ज्यादा खतरनाक कौन है, कुरआन के बेअदबी के लिए खुशी से तैयार होने वाला या आपके कुरआन के लिए आपसे ही लड़ने को तैयार हो जाने वाला ?

इन सब चीजों को मद्देनजर रखकर खुद ही सोचिये कि क्या तौकीर रजा खा का यह फैसला सही नही है ? दुनिया भर में इस्लाम को मिटाने की पूरी कोशिशें की जा रही है हिन्दोस्तान में तो सरकारें तक इस्लाम को मिटाने के लिए सरकारी पावर को इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकतीं, इस्लाम दुश्मनों की कोशिशों को पूरी मदद देने के लिए आरएसएस पोषित रंगबिरंगे अखबार और चैनल काम पर लगे हैं सबूत के तौर पर ताजा मामलों को ही देखिये जेएनयू मामले में फर्जी वीडियो का दिखाया जाना, दिल्ली में 12 मुसलमान लड़कों को पकड़कर आतंकी घोषित करने की चाल चली गयी मीडियाई दल्लों ने तुरन्त ही 12 आतंकी गिरफ्तार कहकर खबर प्रसारित करनी शुरू करदी साथ ही दूसरे सभी मामलों की तरह इन बारह लड़को की जीवनियां भी सुना डाली, खुदा का शुक्र कि साजिश पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी और कुछ को छोड़ना पड़ा लेकिन कुछ मीडियाई दल्लों ने तौकीर रजा खां के कदम को लेकर लिखी खबर में भी आतंकी शाकिर ही लिखा, बेशर्म सम्पादकों के हौसले इतने बुलन्द हो चुके है कि वे अब खुद ही जज बन गये जिन्हे खुफिया एजेसिंयों ने बेकसूर पाकर छोड़ दिया उसी बेकसूर शाकिर को सम्पादक आतंकी लिख रहा है।

इस्लाम को मिटाने की मुहिम में सब के सब एक जुट होकर लगे है चाहे वह हिन्दू धर्म से तआल्लुक रखता हो या इसाई धर्म से, यहूदी हो या पारसी। लेकिन हम मुसलमान सुन्नी वहाबी देवबन्दी और यहां तककि सुन्नी और रजवी के खेमों में बटे रहने में ही अपनी बढ़ाई तलाश रहे हैं।

तौकीर रजा खां की इस खबर के बाद अजीबो गरीब तरह की बयानबाजी हो रही है लगता है कि इस्लाम और मुसलमान के वजूद की फिक्र है ही नहीं किसी को। तारीखे इस्लाम उठाकर देखिये दुनिया के सबसे बड़े रहम दिल आका नबीए करीम (सल्ल0) जिन्होंने हर हर जानदार चीज पर रहम किया पेड़ों को काटने तकसे मना फरमाया लेकिन जब जरूरत पड़ी तो हाथ में तलवार भी उठाई, इस्लाम की हिफाजत के लिए अपने बच्चों तक की कुर्बानियां दीं तो क्या आज हम उसी इस्लाम की हिफाजत के लिए अपनी अना को नहीं छोड़ सकते ?

क्योंकि कुरआन का भी कुछ ऐसा ही हुक्म है कि ‘‘ हालात के हिसाब से जिस कौम ने अपने अन्दर तब्दीली नहीं की वो कोम तबाह हो गयी श्श् । तारीख में ऐसे हजारों सबूत मौजूद हैं कि इस्लाम और कोम की हिफाजत के लिए बड़े बड़े नागवार फैसले भी लिए गये। फिलहाल हालात का तकाज़ा और वक्त का फतवा चीख चीखकर कह रहा है कि तौकीर रजा खां के इस कदम में अगर उनका साथ नही देना तो ना दें तो कम से कम उनकीं टांग खिचाई भी न की जाये।

वैसे भी कई भगवा आतंकियों ने कई बार साफ कहा है कि मुसलमानों को मिटाने के लिए उनमें सुन्नी वहाबी की दरार को बढ़ाते रहना ही काफी है, इसलिए तौकीर की मुखालफत करने वालों को हालात और वक्त की नजाकत समझना होगा ओर इस्लाम, मुसलमान के वजूद को बचाने के लिए अना को छोड़ना होगा, कहीं ऐसा न हो कि अना के लिए दीन ही कुरबान हो जाये।

शायर ने पहले ही कहा है कि:-
अब अपने काबे की खुद हिफाजत करनी है
अब अबाबीलों का लशकर नहीं आने वाला।

लेखक इमरान नियाज़ी वरिष्ठ पत्रकार एंव अन्याय विवेचक के सम्पादक हैं।

उपरोक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं , लोकभारत का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है ।  

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