2019 में बीजेपी के ताबूत की कील न बन जाएँ ये दो मुद्दे

2019 में बीजेपी के ताबूत की कील न बन जाएँ ये दो मुद्दे

ब्यूरो। 2014 में बड़े बहुमत से केंद्र में सत्ता तक पहुंची भारतीय जनता पार्टी अपने ही बने जाल में उलझती दिखाई दे रही है। लोकसभा चुनावो के बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव फतह करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए आने वाले समय में तीन मुद्दे उसके गले की हड्डी जैसे साबित हो सकते हैं।

राम मंदिर और महंगाई के मुद्दे पर मोदी सरकार की परत दर परत पोल खुलती जा रही है। वहीँ बेरोज़गारो की बढ़ती तादाद और बीफ पर पबन्दी ये दो मुद्दे ऐसे हैं जो मोदी सरकार के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकते हैं।

घट रहे रोज़गार, बढ़ रहे बेरोज़गार :

2014 में रोज़गार के मुद्दे को अपनी चुनावी सभाओं में जोर शोर से उठाने वाली बीजेपी की सबसे बड़ी मुश्किल बढ़ती बेरोज़गारी को लेकर है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में रोज़गार के नए अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं वहीँ आईटी कंपनियों में हो रही छटनी से बेरोज़गारो की तादाद बढ़ रही है।

नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व की मनमोहन सरकार पर जमकर हमला बोला था और दावा किया था कि वह सरकार में आने के बाद बड़ी संख्या में बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराएंगे।मोदी सरकार ने सालाना दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन वर्ष 2014-15 में केवल 1.35 लाख नयी नौकरियां दी गयीं। केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने पिछले आठ साल के जो आंकड़े जारी किए हैं उसपर नजर डालें तो 2015 में सिर्फ 1.55 लाख और 2016 में सिर्फ 2.31 लाख लोगों को रोजगार मिला है।

आपको बता दें कि देश की तकरीबन पचास फीसदी आबादी की उम्र 35 वर्ष से कम है और 2020 तक औसत आयु घटकर 29 फीसदी पहुंच जाएगी, जोकि दुनिया में सबसे युवा आबादी होगी। आने वाले समय में इन युवाओं को हर वर्ष रोजगार मुहैया करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। केंद्र सरकार को हर वर्ष तरीबन 1.20 -1.50 करोड़ लोगों को रोजगार देना होगा। लेकिन आने वाले समय में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई खास योजना नजर नहीं आ रही है।

लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में 8 प्रमुख औद्याेेेगिक क्षेत्रों में सिर्फ 1.55 लाख और 2016 में 2.31 लाख नए रोजगार पैदा हुए थे। जबकि 2009 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान इन क्षेत्रों में 10.6 लाख नई नौकरियां आई थीं। फिलहाल पिछले एक दशक में नौकरियों की यह सबसे धीमी ग्रोथ है।

एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल 8-10 लाख इंजीनियर तैयार होते हैं। आईटी कंपनियों में छंटनी का यह दौर नौजवानों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। हर साल देश में 50-60 लाख नए नौकरी की कतार में जुड़ जाते हैं। बड़ी संख्या में लोग कृषि जैसे असंगठित क्षेत्रों के बजाय रोजगार के लिए सर्विस, मैन्युफक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर का रुख कर रहे हैं। इससे समस्या और भी विकराल हो गई है।

देश में बेरोजगारी की समस्या का एक पहलू यह भी है कि आधे से ज्यादा लोगों के पास पूरे साल काम नहीं है। बेरोजगारी पर लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 61 फीसदी के पास साल भर रोजगार होता है। जबकि 68 फीसदी परिवारों की मासिक आय 10 हजार रुपये से भी कम है। देश में करीब 16 करोड़ लोग अर्ध-बेरोजगारी का शिकार हैं।

बीफ पर पाबन्दी :
देश के उत्तर-पूर्व राज्यों, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध प्रदेश जैसे राज्यों में बीफ एक बड़ा मुद्दा है। इन राज्यों में मवेशियों के कारोबार पर केंद्र सरकार की अधिसूचना का इन सभी राज्यों में जबर्दस्त विरोध किया जा रहा है।

मोदी सरकार के आदेश को पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा राज्य सरकारों ने लागू न करने की बात कही है। वहीँ मेघालय में बीजेपी नेताओं ने ही इसका विरोध किया है और राज्य के एक वरिष्ठ नेता ने इस अधिसूचना के विरोध में इस्तीफा भी दे दिया है। तमिलनाडु में विपक्षी दल डीएमके ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है।

बीफ पर पाबन्दी से नाराज़ दक्षिण और पूर्वोंत्तर राज्यों के मतदाता चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ी टेंशन बन सकते हैं। यह वह मतदाता है जिन पर बीजेपी 2019 के चुनावो के लिए नज़र जमाये बैठी थी।

बीजेपी के लिए एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि  2019 के लोकसभा चुनावो में जनता यह भी सवाल करेगी कि  केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार होने के बावजूद राम मंदिर क्यों नहीं बना और महंगाई क्यों कम नहीं हुई ? वहीँ किसानो की आत्म हत्या, पाकिस्तान द्वारा सीमा पर हमले पर सरकार की ख़ामोशी पर भी सवाल उठेंगे।  बीजेपी नेताओं को इन सवालो के जबाव आज से ही  ढूंढ़ने होंगे।

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